रोज़-ओ-शब् जोश पे रहमत का है दरिया तेरा
सदक़े इस शान-ए-सख़ावत पे ये मंगता तेरा
हाथ उठे भी न थे और मिल गया सदक़ा तेरा
वाह ! क्या जूद-ओ-करम है शह-ए-बतहा ! तेरा
नहीं सुनता ही नहीं मांगने वाला तेरा
वो हकीकत तेरी जिब्रील जिसे ना जाने
किस तरह लोग भला रुतबा तुम्हारा जाने
तोड़ दे लिख के क़लम यूँहीं, जो लिखना जाने
फर्श वाले तेरी शौक़त का 'उलू क्या जाने
खुशरवा 'अर्श पे उड़ता है फरेरा तेरा
न कोई तुझसा सख़ी है न कोई मुझसे ग़रीब
चश्म-ए-बेदार ! जगादे मेरे ख़्वाबीदा नसीब
तू जो चाहे वो वही चाहे, तुम इतने हो करीब
मैं तो मालिक ही कहूंगा के हो मालिक के हबीब
या'नी महबूब-ओ-मुहीब में नहीं मेरा-तेरा
न कोई तुझसा सख़ी है न कोई मुझसे ग़रीब
एक नज़र तेरी जगाये, मेरे ख़्वाबीदा नसीब
क़ुर्ब-ए-हक़ उसको मिला , जो तेरे क़दमों से है करीब
मैं तो मालिक ही कहूंगा के हो मालिक के हबीब
या'नी महबूब-ओ-मुहीब में नहीं मेरा-तेरा
जायेगी खुल्द में आक़ा की है उम्मत जितनी
तेरी रहमत को 'अता हो गयी वुस'अत इतनी
तेरे होते हुए क्यों फ़िक्र करूँ मैं अपनी
एक मैं क्या ? मेरे इस्यां की हकीकत कितनी
मुझसे सो-लाख को काफी है इशारा तेरा
चांदनी रात में जाबिर का नज़ारा देखें
चाँद को वो कभी आक़ा तेरा चहेरा देखें
बोल उठे वो भी तो आखिर यही जुमला देखें
तेरे क़दमों में जो है ग़ैर का मुंह क्या देखें
कौन नज़रों पे चढ़े देख के तलवा तेरा
तेरी खैरात का एक ज़र्रा करे हमको निहाल
किस तरह जाएं किसी और के दर बहर-ए-सुवाल
सिल्सिला अपनी 'अताओं का यूँही रखना बहाल
तेरे टुकड़ों पे पीला ग़ैर की ठोकर पे न डाल
झिड़कियां खाएं कहाँ छोड़ के सदक़ा तेरा
गर गुनाहों के सबब तुमने दिया दर से निकाल
इस तसव्वुर से ही हो जाएं तेरे बन्दे निढाल
कौन रक्खेगा तेरी तरह, फकीरों का ख़याल
तेरे टुकड़ों पे पीला ग़ैर की ठोकर पे न डाल
झिड़कियां खाएं कहाँ छोड़ के सदक़ा तेरा
अज़-प्-ए-ख़ालिक़-ओ-रहमान-ओ-वली कर दे के है
अज़-प्-ए-फातिमा, हसनैन-ओ-'अली कर दे के है
तू है मुख्तार प्-ए-ग़ौस-ओ-जली कर दे के है
मेरी तक़दीर बुरी हो तो भली कर दे के है
महव-ओ-इसबात के दफ्तर पे कड़ोड़ा तेरा
दौलत-ए-'इश्क़ से मेरा दिल ग़नी कर दे के है
गुम रहूं तुझमें मेरी ख़त्म खुदी कर दे के है
इस गुनाहगार पे रहमत की जड़ी कर दे के है
मेरी तक़दीर बुरी हो तो भली कर दे के है
महव-ओ-इसबात के दफ्तर पे कड़ोड़ा तेरा
हैं जो बे-ज़र, मेरी सरकार ! उन्हें ज़र दे के है
बेटियां जिनकी कुंवारी हैं, उन्हें पर दे के है
छत नहीं जिनको मुयस्सर, उन्हें एक घर दे के है
मेरी तक़दीर बुरी हो तो भली कर दे के है
महव-ओ-इसबात के दफ्तर पे कड़ोड़ा तेरा
का'बा-ए-जान का मिले हश्र में मुझको गिलाफ
साथ माँ-बाप हों , अहबाब भी हों और अखलाफ
इस इनायत पे यही शोर उठे चो-अतराफ़
चोर हाकिम से छुपा करते हैं, या उसके खिलाफ
तेरे दामन में छुपे चोर अनोखा तेरा
वाह ! क्या शान बड़ाई है ख़ुदा ने तेरी
अववलीं, आखरीं सब हम्द करेंगे तेरी
दौड़ें जब जाम-ब-कफ, बंटने लगे मेह तेरी
तेरे सदक़े मुझे एक बून्द बहोत है तेरी
जिस दिन अच्छों को मिले जाम छलकता तेरा
मेरे 'ईसा ! तेरे बीमार पे कैसी गुज़रे
बे-नवा ज़ार पे, ला-चार पे कैसी गुज़रे
नज़ा' के वक़्त गुनाहगार पे कैसी गुज़रे
दूर क्या जानिये बदकार पे कैसी गुज़रे
तेरे ही दर पे मरे बे-कस-ओ-तन्हा तेरा
देने आये थे बिशारत तेरी आदम ता मसीह
हम्द जिसकी करे मख्लूक़ वो तेरा है मदीह
पूरी लिल्लाह मेरी कर दे तू हाजात-ए-जमी'अ
तेरी सरकार में लाता है रज़ा उसको शफी'अ
जो मेरा ग़ौस है और लाडला बेटा तेरा
गर तलब है के बर आएं तेरी हाजात-ए-जमी'अ
कर उबैद ! अपने रज़ा की ज़रा तक़लीद-ए-वकी'अ
पेश कर तू यही क़ौल, ब-दरगाह-ए-वक़ी'अ
तेरी सरकार में लाता है रज़ा उसको शफी'अ
जो मेरा ग़ौस है और लाडला बेटा तेरा
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